इद्दो Poetry (page 6)

न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा

चकबस्त ब्रिज नारायण

कब से उलझ रहे हैं दम-ए-वापसीं से हम

बिस्मिल सईदी

तंग आ गए हैं क्या करें इस ज़िंदगी से हम

बिस्मिल अज़ीमाबादी

मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद

बेख़ुद देहलवी

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

जताए जाते हैं एहसान भी सता के मुझे

बेख़ुद देहलवी

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी

बज़्म-ए-दुश्मन में बुलाते हो ये क्या करते हो

बेख़ुद देहलवी

न मुदारात हमारी न अदू से नफ़रत

बेखुद बदायुनी

ये मैं कहूँगा फ़लक पे जा कर ज़मीं से आया हूँ तंग आ कर

बयान मेरठी

लहू टपका किसी की आरज़ू से

बयान मेरठी

बादल है और फूल खिले हैं सभी तरफ़

बासिर सुल्तान काज़मी

इक हुस्न-ए-बे-मिसाल के जो रू-ब-रू हूँ मैं

बशीर सैफ़ी

क़र्या क़र्या ख़ाक उड़ाई कूचा-गर्द फ़क़ीर हुए

बशीर अहमद बशीर

याँ तक अदू का पास है उन को कि बज़्म में

ज़फ़र

वाक़िफ़ हैं हम कि हज़रत-ए-ग़म ऐसे शख़्स हैं

ज़फ़र

निबाह बात का उस हीला-गर से कुछ न हुआ

ज़फ़र

क्यूँकर न ख़ाकसार रहें अहल-ए-कीं से दूर

ज़फ़र

खड़ा था कौन कहाँ कुछ पता चला ही नहीं

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

दिल कुश्ता-ए-नज़र है महरूम-ए-गुफ़्तुगू हूँ

अज़ीज़ लखनवी

उमीद

अज़ीज़ फ़ैसल

क़ज़ा का तीर था कोई कमान से निकल गया

अज़हर अदीब

कुछ अब के रस्म-ए-जहाँ के ख़िलाफ़ करना है

अज़हर अदीब

इस से पहले कि घर के पर्दों से

आज़र अस्करी

यहीं कहीं पे अदू ने पड़ाव डाला था

अतहर नासिक

यही जो तेरे मिरे दिल की राजधानी थी

अतहर नासिक

कहाँ तलाश में जाऊँ कि जुस्तुजू तू है

आसिम वास्ती

नुमू की ख़ाक से उट्ठेगा फिर लहू मेरा

अासिफ़ साक़िब

किसे मजाल जो टोके मिरी उड़ानों को

अासिफ़ साक़िब

मुक़ावमत

आसिफ़ रज़ा

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