दर्पण Poetry (page 15)
मैं ताइर-ए-वजूद या बर्ग-ए-ख़याल था
फ़ारूक़ मुज़्तर
यारों को क्या ढूँड रहे हो वक़्त की आँख-मिचोली में
फ़ारूक़ अंजुम
तेरी ख़ातिर ये फ़ुसूँ हम ने जगा रक्खा है
फ़ारिग़ बुख़ारी
देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी
फ़ारिग़ बुख़ारी
अपने ही साए में था में शायद छुपा हुआ
फ़ारिग़ बुख़ारी
बिछड़े घर का साया
फ़रहत एहसास
रास्ता दे ऐ हुजूम-ए-शहर घर जाएँगे हम
फ़रहत एहसास
पुराना ज़ख़्म जिसे तजरबा ज़ियादा है
फ़रहत एहसास
मोहब्बत का सिला-कार-ए-मोहब्बत से नहीं मिलता
फ़रहत एहसास
कुछ भी न कहना कुछ भी न सुनना लफ़्ज़ में लफ़्ज़ उतरने देना
फ़रहत एहसास
हम अपना इस्म ले कर शहर-ए-सिफ़त से निकले
फ़रहत एहसास
देखते ही देखते खोने से पहले देखते
फ़रहत एहसास
बदन और रूह में झगड़ा पड़ा है
फ़रहत एहसास
औरों का सारा काम मुझे दे दिया गया
फ़रहत एहसास
अभी नहीं कि अभी महज़ इस्तिआरा बना
फ़रहत एहसास
जब तिरी ज़ात को फैला हुआ दरिया समझूँ
फ़रहत अब्बास
हैं इन में बंद किसी अहद-ए-रस्त-ख़ेज़ के अक्स
फ़रहान सालिम
है मेरी आँखों में अक्स-ए-नविश्ता-ए-दीवार
फ़रहान सालिम
शुहूद-ए-दिल-ज़दगाँ मंज़रों में रख आना
फ़रहान सालिम
मिरे चराग़ो मिरा गंज-ए-बे-कराँ ले लो
फ़रहान सालिम
सिकंदर हूँ तलाश-ए-आब-ए-हैवाँ रोज़ करता हूँ
फ़रीद परबती
ग़म का बादल
फ़रीद इशरती
वो अक्स-ए-दिल-ए-आश्ना छोड़ आए
फ़राज़ सुल्तानपूरी
इस लिए दौड़ते ही ऐसे हैं
फ़राज़ महमूद फ़ारिज़
वो मेरे बारे में ऐसे भी सोचता कब था
फ़रह इक़बाल
मोहब्बत का दिया ऐसे बुझा था
फ़रह इक़बाल
कहीं यक़ीं से न हो जाएँ हम गुमाँ की तरह
फ़रह इक़बाल
कमी ज़रा सी अगर फ़ासले में आ जाए
फ़राग़ रोहवी
चेहरे से कब अयाँ है मिरे इज़्तिरार भी
फख़्र अब्बास
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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