दर्पण Poetry (page 3)

दौलत-ए-दर्द समेटो कि बिखरने को है

यासमीन हमीद

अता-ए-अब्र से इंकार करना चाहिए था

यासमीन हमीद

दरून-ए-हल्का-ए-ज़ंजीर हूँ मैं

याक़ूब तसव्वुर

वो राहबर तो नहीं था इआदा क्या करता

याक़ूब आरिफ़

पड़ गई दिल में तिरे तशरीफ़ फ़रमाने में धूम

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

ज़र्रा हरीफ़-ए-मेहर दरख़्शाँ है आज कल

वासिफ़ देहलवी

मिरे वजूद को पामाल करना चाहता है

वक़ार मानवी

ग़म-ए-मोहब्बत है कार-फ़रमा दुआ से पहले असर से पहले

वक़ार बिजनोरी

हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस

वामिक़ जौनपुरी

उधर वो बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम क़ातिल है

वलीउल्लाह मुहिब

शब-ए-फ़िराक़ न काटे कटे है क्या कीजे

वलीउल्लाह मुहिब

होंट मसरूफ़-ए-दुआ आँख सवाली क्यूँ है

वजीह सानी

हुस्न की ज़बान से

वहीदुद्दीन सलीम

रात भर ख़्वाब के दरिया में सवेरा देखा

वहीद अख़्तर

शफ़्फ़ाफियाँ

वहीद अहमद

वही हादसों के क़िस्से वही मौत की कहानी

वफ़ा बराही

बना के वहम ओ गुमाँ की दुनिया हक़ीक़तों के सराब देखूँ

उमैर मंज़र

नफ़रतों का अक्स भी पड़ने न देना ज़ेहन पर

तुफ़ैल चतुर्वेदी

हुए हो किस लिए बरहम अज़ीज़म

तसनीम आबिदी

ज़ेहन में हो कोई मंज़िल तो नज़र में ले जाऊँ

तसव्वुर ज़ैदी

पत्थरों पर नक़्श उभरा क्यूँ नहीं

तसव्वुर ज़ैदी

मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए

तारिक़ नईम

सरसब्ज़ थे हुरूफ़ प लहजे में हब्स था

तारिक़ जामी

सफ़र और क़ैद में अब की दफ़अ' क्या हुआ

तनवीर अंजुम

ग़म-ए-जहाँ में ग़म-ए-यार ज़म न कर पाया

तालिब हुसैन तालिब

एक आवाज़

तख़्त सिंह

मिरे ख़याल का साया जहाँ पड़ा होगा

तख़्त सिंह

हर अश्क तिरी याद का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है

तख़्त सिंह

तो तय हुआ ना कि जब भी लिखना रुतों के सारे अज़ाब लिखना

ताहिर तोनस्वी

दर्द ख़ामोश रहा टूटती आवाज़ रही

ताहिर फ़राज़

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