दर्पण Poetry (page 23)

वक़्त के हर इक नक़्श का मअ'नी इतना बदला बदला होगा

अहमद फ़क़ीह

ये मिरा वहम तो कुछ और सुना जाता है

अहमद अता

ये अक्स आप ही बनते हैं हम से मिलते हैं

अहमद अता

दिखाई दे कि शुआ-ए-बसीर खींचता हूँ

अफ़ज़ाल नवेद

हर चंद ज़िंदगी का सफ़र मुश्किलों में है

अफ़ज़ल मिनहास

गहरा सुकूत ज़ेहन को बेहाल कर गया

अफ़ज़ल मिनहास

सितम की तेग़ पे ये दस्त-ए-बे-नियाम रक्खा

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

हिज्र-ज़ाद

आफ़ताब इक़बाल शमीम

दीवार-ए-चीन

आफ़ताब इक़बाल शमीम

दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें

आफ़ताब इक़बाल शमीम

गए मंज़रों से ये क्या उड़ा है निगाह में

आफ़ताब हुसैन

गए मंज़रों से ये क्या उड़ा है निगाह में

आफ़ताब हुसैन

ये रेग-ए-रवाँ याद-दहानी तो नहीं क्या

आफ़ताब अहमद

सियाह सायों की तिश्नगी में

आदिल मंसूरी

साए की पिसली से निकला है जिस्म तिरा

आदिल मंसूरी

लहू को सुर्ख़ गुलाबों में बंद रहने दो

आदिल मंसूरी

वुसअत-ए-दामन-ए-सहरा देखूँ

आदिल मंसूरी

घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में

आदिल मंसूरी

हर इक जवाब की तह में सवाल आएगा

आदिल हयात

शामिल था ये सितम भी किसी के निसाब में

अदीम हाशमी

लोगों के दर्द अपनी पशेमानियाँ मिलीं

अदीम हाशमी

साज़-ए-सुख़न बहाना है

अदा जाफ़री

यही नहीं कि ज़ख़्म-ए-जाँ को चारा-जू मिला नहीं

अदा जाफ़री

निगाह ओट रहूँ कासा-ए-ख़बर में रहूँ

अदा जाफ़री

मुझे रंग-ए-ख़्वाब से ज़िंदगी का यक़ीं मिला

अदा जाफ़री

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

क्या क्या धरे अजूबे हैं शहर-ए-ख़याल में

अबरार हामिद

निकाल लाए हैं सब लोग उस के अक्स में नक़्स

आबिद मलिक

किसे ख़बर थी कि ख़ुद को वो यूँ छुपाएगा

आबिद ख़ुर्शीद

तुम अपने अक्स में क्या देखते हो

अब्दुल्लाह जावेद

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