दर्पण Poetry (page 2)

कब तलक ये शाला-ए-बे-रंग मंज़र देखिए

ज़ेब ग़ौरी

ढला न संग के पैकर में यार किस का था

ज़ेब ग़ौरी

तू अपने जैसा अछूता ख़याल दे मुझ को

ज़रीना सानी

पलकों पे तैरते हुए महशर तमाम-शुद

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

हाइल दिलों की राह में कुछ तो अना भी है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

मेरे अंदर निहाँ है अक्स मिरा

ज़की तारिक़

कौन कहता है गुम हुआ परतव

ज़की तारिक़

उभरता चाँद सियह रात के परों में था

ज़काउद्दीन शायाँ

अजब क्या है रहे उस पार बहते जुगनुओं की रौशनी तहलील की ज़द में

ज़ाहिद मसूद

परवाना जल के साहब-ए-किरदार बन गया

ज़हीर काश्मीरी

मुज़्महिल होने पे भी ख़ुद को जवाँ रखते हैं हम

ज़हीर काश्मीरी

हर आदमी को ख़्वाब दिखाना मुहाल है

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

जमाल पा के तब-ओ-ताब-ए-ग़म यगाना हुआ है

ज़हीर फ़तेहपूरी

सिमटूँ तो सिफ़्र सा लगूँ फैलूँ तो इक जहाँ हूँ मैं

ज़फ़र कलीम

लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

आइना देखें न हम अक्स ही अपना देखें

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

यक़ीं की ख़ाक उड़ाते गुमाँ बनाते हैं

ज़फ़र इक़बाल

मक़्बूल-ए-अवाम हो गया मैं

ज़फ़र इक़बाल

मैं ज़र्द आग न पानी के सर्द डर में रहा

ज़फ़र इक़बाल

जहाँ मेरे न होने का निशाँ फैला हुआ है

ज़फ़र इक़बाल

ईमाँ के साथ ख़ामी-ए-ईमाँ भी चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

है और बात बहुत मेरी बात से आगे

ज़फ़र इक़बाल

अभी किसी के न मेरे कहे से गुज़रेगा

ज़फ़र इक़बाल

ज़मीं फिर दर्द का ये साएबाँ कोई नहीं देगा

ज़फ़र गोरखपुरी

जो आए वो हिसाब-ए-आब-ओ-दाना करने वाले थे

ज़फ़र गोरखपुरी

चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद

ज़फ़र गोरखपुरी

दिल में रख ज़ख़्म-ए-नवा राह में काम आएगा

ज़फ़र गौरी

हालत-ए-बीमार-ए-ग़म पर जिस को हैरानी नहीं

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

मिसाल-ए-अक्स मिरे आइने में ढलता रहा

यासमीन हमीद

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