दर्पण Poetry (page 4)

मेहवर पे भी गर्दिश मिरी मेहवर से अलग हो

तफ़ज़ील अहमद

कहीं से तुम मुझे आवाज़ देती हो

ताबिश कमाल

यूँ तो इख़्लास में इस के कोई धोका भी नहीं

सय्यदा शान-ए-मेराज

कभी कभी तिरी चाहत पे ये गुमाँ गुज़रा

सय्यदा शान-ए-मेराज

हर-सू ख़ुशबू को फ़ज़ाओं में बिखरता देखूँ

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

ये शबनम फूल तारे चाँदनी में अक्स किस का है

सय्यद शकील दस्नवी

क्यूँ फ़ना से डरें बक़ा क्या है

सय्यद हामिद

ज़िंदा हुआ है आज तू मरने के ब'अद भी

सय्यद अारिफ़

नशा नशा सा हवाएँ रचाए फिरती हैं

सय्यद अारिफ़

वो दश्त-ए-तीरगी है कि कोई सदा न दे

सय्यद अहमद शमीम

दिल है आईना-ए-हैरत से दो-चार आज की रात

सय्यद आबिद अली आबिद

नोक-ए-शमशीर की घात का सिलसिला यूँ पस-ए-आइना कल उतारा गया

सूरज नारायण

आइनों में अक्स बिन कर जिन के पैकर आ गए

सुलतान निज़ामी

तन्हाइयों की बर्फ़ थी बिस्तर पे जा-ब-जा

सुल्तान अख़्तर

तन्हाई की ख़लीज है यूँ दरमियान में

सुल्तान अख़्तर

सब का चेहरा पस-ए-दीवार-ए-अना रहता है

सुल्तान अख़्तर

मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है

सुल्तान अख़्तर

मिरे चारों तरफ़ ये साज़िश-ए-तस्ख़ीर कैसी है

सुल्तान अख़्तर

कुछ डूबता उभरता सा रहता है सामने

सुल्तान अख़्तर

हर-चंद अपने अक्स का दिल दर्दमंद हो

सुल्तान अख़्तर

अब तक लहू का ज़ाइक़ा ख़ंजर पे नक़्श है

सुल्तान अख़्तर

तुझे क्या हुआ है बता ऐ दिल न सुकून है न क़रार है

सुलैमान अहमद मानी

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

हवस

सुबोध लाल साक़ी

ज़ब्त कर ग़म को कि जीने का हुनर आएगा

सुभाष पाठक ज़िया

है जो दीवार पर घड़ी तन्हा

सिया सचदेव

दिल से अब तो नक़्श-ए-याद-ए-रफ़्तगाँ भी मिट गया

सिराज मुनीर

ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए

सिराज लखनवी

सर्व-ए-गुलशन पर सुख़न उस क़द का बाला हो गया

सिराज औरंगाबादी

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