दर्पण Poetry (page 6)

साथ ग़ुर्बत में कोई ग़ैर न अपना निकला

शकेब बनारसी

रदीफ़ क़ाफ़िया बंदिश ख़याल लफ़्ज़-गरी

शहज़ाद क़ैस

क्या हमारे शौक़ भी वो कज-अदा ले जाएगा

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

अपने ही अक्स को पानी में कहाँ तक देखूँ

शहज़ाद अहमद

ये किस के आने के इम्काँ दिखाई देते हैं

शहज़ाद अहमद

मुंतज़िर दश्त-ए-दिल-ओ-जाँ है कि आहू आए

शहज़ाद अहमद

कहीं भी साया नहीं किस तरफ़ चले कोई

शहज़ाद अहमद

हम लोगों को अपने दिल के राज़ बताते रहते हैं

शहज़ाद अहमद

ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा

शहरयार

फ़ज़ा होती ग़ुबार-आलूदा सूरज डूबता होता

शहराम सर्मदी

सभी रास्ते तिरे नाम के सभी फ़ासले तिरे नाम के

शहनवाज़ ज़ैदी

रौशन आईनों में झूटे अक्स उतार गया

शहनवाज़ ज़ैदी

है शर्त क़ीमत-ए-हुनर भी अब तो रब्त-ए-ख़ास पर

शाहिदा तबस्सुम

मिले जो नाक़ा-ए-वहशत को सारबाँ कोई

शाहिदा हसन

एहसास तो मुझी पे कर रही है

शाहिदा हसन

बात कोई एक पल उस के ध्यान के आने की थी

शाहिदा हसन

ज़ब्त-ए-ग़म है मिरी पोशाक मिरी इज़्ज़त रख

शाहिद ज़की

मैं अपने हिस्से की तन्हाई महफ़िल से निकालूँगा

शाहिद ज़की

आँखों में है पर आँख ने देखा नहीं अभी

शाहिद शैदाई

रात ऐसी कि कभी जिस का सवेरा न हुआ

शाहिद माहुली

हमें ख़बर भी नहीं यार खींचता है कोई

शाहिद कमाल

दश्त-ए-वहशत को फिर आबाद करूँगा इक दिन

शाहिद कमाल

अंदर का सुकूत कह रहा है

शाहिद कबीर

महताब है न अक्स-ए-रुख़-ए-यार अब कोई

शाहिद इश्क़ी

ज़रूरत क्या है

शाहीन मुफ़्ती

शहर-ए-ख़ूबाँ से जो हम अब भी गुज़र आते हैं

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

तलाश

शहाब जाफ़री

लगा जब अक्स-ए-अबरू देखने दिलदार पानी में

शाह नसीर

क़दम न रख मिरी चश्म-ए-पुर-आब के घर में

शाह नसीर

न ज़िक्र-ए-आश्ना ने क़िस्सा-ए-बेगाना रखते हैं

शाह नसीर

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