दर्पण Poetry (page 8)

हम तो यूँ उलझे कि भूले आप ही अपना ख़याल

समीना राजा

चश्म-ए-हैराँ को यूँ ही महव-ए-नज़र छोड़ गए

समद अंसारी

यूँ भला तुम पर सजा कब आइने में देखना

सलमान सिद्दीक़ी

सीमिया

सलमान अंसारी

मुख़ालिफ़ जब से आईना हुआ है

सलीम शुजाअ अंसारी

कौन कहता है कि यूँही राज़दार उस ने किया

सलीम सिद्दीक़ी

हूँ पारसा तिरे पहलू में शब गुज़ार के भी

सलीम सिद्दीक़ी

लगता है वो आज ख़्वाब जैसा

सलीम शहज़ाद

हूँ मैं भी वही मेरा मुक़ाबिल भी वही है

सलीम शाहिद

दश्त की धूप भर गया मुझ में

सलीम मुहीउद्दीन

मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है

सलीम कौसर

सफ़र की इब्तिदा हुई कि तेरा ध्यान आ गया

सलीम कौसर

मुलाक़ातों का ऐसा सिलसिला रक्खा है तुम ने

सलीम कौसर

मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है

सलीम कौसर

कैसे हंगामा-ए-फ़ुर्सत में मिले हैं तुझ से

सलीम कौसर

कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए

सलीम कौसर

कभी मौसम साथ नहीं देते कभी बेल मुंडेर नहीं चढ़ती

सलीम कौसर

चश्म बे-ख़्वाब हुई शहर की वीरानी से

सलीम कौसर

चमकती ओस की सूरत गुलों की आरज़ू होना

सलीम फ़िगार

ख़ुद अपने अक्स को हैरत से देखता हूँ मैं

सलीम बेताब

पीतल का साँप

सलाम मछली शहरी

शगुफ़्ता बच्चों का चेहरा दिखाई देने लगे

सलाम मछली शहरी

कार्तिक

सलाहुद्दीन परवेज़

इश्क़ करने में दिल भी क्या है शोख़

सख़ी लख़नवी

शब की ज़ुल्फ़ें सँवारता हुआ मैं

सज्जाद बलूच

दिखाई देंगी सभी मुम्किनात काग़ज़ पर

सज्जाद बलूच

लफ़्ज़ का कितना तक़द्दुस है ये कब जानते हैं

सज्जाद बाबर

कलियाँ नीला आसमान ज़ंजीर

साजिदा ज़ैदी

अब क्या गिला करें कि मुक़द्दर में कुछ न था

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

रंगों में तेरा अक्स ढला तू न ढल सकी

साहिर लुधियानवी

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