दश्त की धूप भर गया मुझ में

दश्त की धूप भर गया मुझ में

मेरा साया बिखर गया मुझ में

नाम हो चाहे अक्स हो तेरा

इक जज़ीरा उभर गया मुझ में

पढ़ सका जो वरक़ वरक़ न मुझे

वो मुकम्मल उतर गया मुझ में

उस को गुज़रे गुज़र गईं सदियाँ

एक लम्हा ठहर गया मुझ में

किस को ढूँडूँ कहाँ कहाँ ढूँडूँ

ख़ुशबुएँ कौन भर गया मुझ में

क़ैद-ए-तन्हाई से निकाले वही

जो मुझे क़ैद कर गया मुझ में

किस का मातम करे 'सलीम' कोई

अजनबी था जो मर गया मुझ में

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In Hindi By Famous Poet Saleem Muhiuddin. is written by Saleem Muhiuddin. Complete Poem in Hindi by Saleem Muhiuddin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.