दर्पण Poetry (page 17)

मेरे ख़ामोश ख़ुदा

बुशरा एजाज़

इस क़दर बढ़ गई वहशत तिरे दीवाने की

बूम मेरठी

वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता है

बिस्मिल साबरी

वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता है

बिस्मिल साबरी

यूँ न जान अश्क हमें जो गया बाना न मिला

बिमल कृष्ण अश्क

मिरी भी मान मिरा अक्स मत दिखा मुझ को

बिमल कृष्ण अश्क

लगा के नक़्ब किसी रोज़ मार सकते हैं

बिल्क़ीस ख़ान

ख़्वाहिश-ए-पर्वाज़ है तो बाल-ओ-पर भी चाहिए

भारत भूषण पन्त

दीद की तमन्ना में आँख भर के रोए थे

भारत भूषण पन्त

ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले

बेख़ुद देहलवी

वो हटे आँख के आगे से तो बस सूरत-ए-अक्स

बयान मेरठी

लहू टपका किसी की आरज़ू से

बयान मेरठी

ऐ जुनूँ हाथ के चलते ही मचल जाऊँगा

बयान मेरठी

इक बे-सबात अक्स बना बे-निशाँ गया

बशीर अहमद बशीर

मुझे जीना नहीं आता

बशर नवाज़

घटती बढ़ती रौशनियों ने मुझे समझा नहीं

बशर नवाज़

टूटे शीशे की आख़िरी नज़्म

बाक़र मेहदी

तर्सील

बलराज कोमल

यकायक अक्स धुँदलाने लगे हैं

बकुल देव

दिल से बे-सूद और जाँ से ख़राब

बकुल देव

तिश्नगी-ए-लब पे हम अक्स-ए-आब लिक्खेंगे

बख़्श लाइलपूरी

कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है

बहराम जी

महसूस हो रहा है जो ग़म मेरी ज़ात का

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

जिसे भी देखिए प्यासा दिखाई देता है

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

नहीं नहीं ये मिरा अक्स हो नहीं सकता

बाबर रहमान शाह

जलती बुझती हुई आँखों में सितारे लिक्खे

अज़रा वहीद

मुराजअत

अज़ीज़ तमन्नाई

हर आईना इक अक्स-ए-नौ ढूँडता है

अज़ीज़ तमन्नाई

मैं!

अज़ीज़ क़ैसी

ज़मीं की आँख से मंज़र कोई उतारते हैं

अज़ीज़ नबील

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