दर्पण Poetry (page 18)

जब से ज़ुल्फ़ों का पड़ा है इस में अक्स

अज़ीज़ लखनवी

वो निगाहें क्या कहूँ क्यूँ कर रग-ए-जाँ हो गईं

अज़ीज़ लखनवी

इश्क़ जो मेराज का इक ज़ीना है

अज़ीज़ लखनवी

उतर कर पानियों में चाँद महव-ए-रक़्स रहता है

अज़हर नक़वी

किनारों से जुदा होता नहीं तुग़्यानियों का दुख

अज़हर नक़वी

गिर्दाब-ए-रेग-ए-जान से मौज-ए-सराब तक

अज़हर नक़वी

चलते चलते साल कितने हो गए

अज़हर इनायती

मेरा तो नाम रेत के सागर पे नक़्श है

आज़ाद गुलाटी

सात सुरों का बहता दरिया तेरे नाम

अय्यूब ख़ावर

न कोई दिन न कोई रात इंतिज़ार की है

अय्यूब ख़ावर

न कोई दिन न कोई रात इंतिज़ार की है

अय्यूब ख़ावर

इक तुम कि हो बे-ख़बर सदा के

अय्यूब ख़ावर

बुझने लगे नज़र तो फिर उस पार देखना

अय्यूब ख़ावर

तिरे फ़लक ही से टूटने वाली रौशनी के हैं अक्स सारे

अतीक़ुल्लाह

आईना आईना तैरता कोई अक्स

अतीक़ुल्लाह

वो मेरे नाले का शोर ही था शब-ए-सियह की निहायतों में

अतीक़ुल्लाह

चराग़ हाथों के बुझ रहे हैं सितारा हर रह-गुज़र में रख दे

अतीक़ुल्लाह

आसमाँ का सितारा न महताब है

अतीक़ुल्लाह

दरमियान-ए-गुनाह-ओ-सवाब आदमी

आतिफ़ ख़ान

शोहरत-ए-फ़न बहुत हुई दाद कमाल दे गए

अताउर्रहमान जमील

नुमाइश में

असरार-उल-हक़ मजाज़

जानते थे ग़म तिरा दरिया भी था गहरा भी था

असरारुल हक़ असरार

मसरूफ़ हम भी अंजुमन-आराइयों में थे

असरार ज़ैदी

बरहनगी का मुदावा कोई लिबास न था

असरार ज़ैदी

सुना है चाँदनी-रातों में अक्सर तुम

असरा रिज़वी

ये आग मोहब्बत की बुझाए न बुझे है

असरा रिज़वी

दर्द की जोत मिरे दिल में जगाने वाले

असरा रिज़वी

आग जो दिल में लगी है वो बुझा दी जाए

असरा रिज़वी

जब उस की तस्वीर बनाई जाती है

असलम राशिद

आ गया कौन ये आज उस के मुक़ाबिल 'असलम'

असलम महमूद

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