अंदर Poetry (page 19)

काला

इमरान शमशाद

मैं शजर हूँ और इक पत्ता है तू

इमरान हुसैन आज़ाद

एक मुद्दत से तो ठहरे हुए पानी में हूँ मैं

इमरान हुसैन आज़ाद

दीवानगी में अपना पता पूछता हूँ मैं

इमरान हुसैन आज़ाद

वक़्त-ए-आख़िर हमें दीदार दिखाया न गया

इमदाद अली बहर

लम्हा मिरी गिरफ़्त में आया निकल गया

इम्दाद आकाश

दिल सियह है बाल हैं सब अपने पीरी में सफ़ेद

इमाम बख़्श नासिख़

हर तरफ़ इक जंग का माहौल है 'आज़म' यहाँ

इमाम अाज़म

शहर में ओले पड़े हैं सर सलामत है कहाँ

इमाम अाज़म

शत्तुल-अरब

इलियास बाबर आवान

पागल

इलियास बाबर आवान

मस्जिद-ए-अहमरीं

इलियास बाबर आवान

अपना अपना दुख बतलाना होता है

इलियास बाबर आवान

बे-घर होना बे-घर रहना सब अच्छा ठहरा

इफ़्तिख़ार क़ैसर

दूर दूर तक सन्नाटा है कोई नहीं है पास

इफ़्तिख़ार क़ैसर

अपने ख़ूँ को ख़र्च किया है और कमाया शहर

इफ़्तिख़ार क़ैसर

एक मुख़्तलिफ़ कहानी

इफ़्तिख़ार नसीम

शाम से तन्हा खड़ा हूँ यास का पैकर हूँ मैं

इफ़्तिख़ार नसीम

किसी के हक़ में सही फ़ैसला हुआ तो है

इफ़्तिख़ार नसीम

हाथ हाथों में न दे बात ही करता जाए

इफ़्तिख़ार नसीम

मिरे वजूद के अंदर मुझे तलाश न कर

इफ़्तिख़ार मुग़ल

किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

रौशन दिल वालों के नाम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मुकालिमा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बैलन्स-शीट

इफ़्तिख़ार आरिफ़

जैसा हूँ वैसा क्यूँ हूँ समझा सकता था मैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अब मसाफ़त में तो आराम नहीं आ सकता

इदरीस बाबर

अजब है खेल कैरम का

इब्न-ए-मुफ़्ती

पिछले-पहर के सन्नाटे में

इब्न-ए-इंशा

झुलसी सी इक बस्ती में

इब्न-ए-इंशा

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