बे-घर होना बे-घर रहना सब अच्छा ठहरा
घर के अंदर घर नहीं पाया शहर में पाया शहर
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Gulzar
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सारे दरिया फूट पड़ेंगे इक दूजे के बीच
हम से अपने गाँव की मिट्टी के घर छीने गए
दूर दूर तक सन्नाटा है कोई नहीं है पास
इस क़दर बढ़ने लगे हैं घर से घर के फ़ासले
अपने ख़ूँ को ख़र्च किया है और कमाया शहर
मिरी आँखों को आँखों का किनारा कौन देगा
मिरे चेहरे को चेहरा कब इनायत कर रहे हो