अंदर Poetry (page 21)

आगे पीछे उस का अपना साया लहराता रहा

हकीम मंज़ूर

आग जो बाहर है पहुँचेगी अंदर भी

हकीम मंज़ूर

जो बस में है वो कर जाना ज़रूरी हो गया है

हैदर क़ुरैशी

मता-ए-दर्द का ख़ूगर मिरी तलाश में है

हैदर अली जाफ़री

अहबाब का शिकवा क्या कीजिए ख़ुद ज़ाहिर ओ बातिन एक नहीं

हफ़ीज़ जालंधरी

शाएर

हफ़ीज़ जालंधरी

कृष्ण कन्हैया

हफ़ीज़ जालंधरी

क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है

हफ़ीज़ जालंधरी

हर क़दम पर हम समझते थे कि मंज़िल आ गई

हफ़ीज़ होशियारपुरी

लब-ए-फ़ुरात वही तिश्नगी का मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

हमारे अहद का मंज़र अजीब मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

वापसी

हबीब तनवीर

गर मैं नहीं तो दर्द का पैकर कोई तो है

हबीब कैफ़ी

दिल-ए-तन्हा में अब एहसास-ए-महरूमी नहीं शायद

हबीब हैदराबादी

तिश्ना-ए-तकमील है वहशत का अफ़्साना अभी

ग्यान चन्द मंसूर

तारे हमारी ख़ाक में बिखरे पड़े रहे

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

कौन सी मंज़िल है जो बे-ख़्वाब आँखों में नहीं

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

उर्दू ज़बाँ

गुलज़ार

मकान

गुलज़ार

ख़ुद-कुशी

गुलज़ार

गर्म लाशें गिरीं फ़सीलों से

गुलज़ार

अश्क आँखों के अंदर न रहा है न रहेगा

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

इश्क़ अहद-ए-बेवफ़ा में बे-नवा हो जाएगा

ग़ुलाम नबी आवान

झाँकता भी नहीं सूरज मिरे घर के अंदर

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

प्यार गया तो कैसे मिलते रंग से रंग और ख़्वाब से ख़्वाब

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

यूँ तो सदा-ए-ज़ख़्म बड़ी दूर तक गई

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वादे यख़-बस्ता कमरों के अंदर गिरते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कहीं लोग तन्हा कहीं घर अकेले

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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