अंदर Poetry (page 36)

होंकते दश्त में इक ग़म का समुंदर देखो

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

ना-काम कोशिश

अब्दुल अहद साज़

जब तक शब्द के दीप जलेंगे सब आएँगे तब तक यार

अब्दुल अहद साज़

अभी उस की ज़रूरत थी

अब्बास ताबिश

तेरी आँखों से अपनी तरफ़ देखना भी अकारत गया

अब्बास ताबिश

सुब्ह की पहली किरन पहली नज़र से पहले

अब्बास ताबिश

शे'र लिखने का फ़ाएदा क्या है

अब्बास ताबिश

साँस के शोर को झंकार न समझा जाए

अब्बास ताबिश

कोई टकरा के सुबुक-सर भी तो हो सकता है

अब्बास ताबिश

झिलमिल से क्या रब्त निकालें कश्ती की तक़दीरों का

अब्बास ताबिश

एक क़दम तेग़ पे और एक शरर पर रक्खा

अब्बास ताबिश

काग़ज़ क़लम दवात के अंदर रुक जाता है

अस्नाथ कंवल

नसरी नज़्म

आसी रिज़वी

घर के अंदर जाने के

आशुफ़्ता चंगेज़ी

इतना क्यूँ शरमाते हैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

मैं हूँ हैराँ ये सिलसिला क्या है

आस मोहम्मद मोहसिन

न जाने बाहर भी कितने आसेब मुंतज़िर हों

आनिस मुईन

मुमकिन है कि सदियों भी नज़र आए न सूरज

आनिस मुईन

मेरे अपने अंदर एक भँवर था जिस में

आनिस मुईन

बदन की अंधी गली तो जा-ए-अमान ठहरी

आनिस मुईन

आज ज़रा सी देर को अपने अंदर झाँक कर देखा था

आनिस मुईन

वो कुछ गहरी सोच में ऐसे डूब गया है

आनिस मुईन

मिलन की साअ'त को इस तरह से अमर किया है

आनिस मुईन

बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है

आनिस मुईन

नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ

आग़ा अकबराबादी

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