घर के अंदर जाने के
और कई दरवाज़े हैं
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घर की हद में सहरा है
दयार-ए-ख़्वाब
है इंतिज़ार मुझे जंग ख़त्म होने का
नजात
तेज़ी से बीतते हुए लम्हों के साथ साथ
सफ़र तो पहले भी कितने किए मगर इस बार
बादबाँ खोलेगी और बंद-ए-क़बा ले जाएगी
धूप के रथ पर हफ़्त अफ़्लाक
सभी को अपना समझता हूँ क्या हुआ है मुझे
हवाएँ तेज़ थीं ये तो फ़क़त बहाने थे
कोई ग़ुल हुआ था न शोर-ए-ख़िज़ाँ
ये बात याद रखेंगे तलाशने वाले