अंदर Poetry (page 20)

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

सुनते हैं फिर छुप छुप उन के घर में आते जाते हो

इब्न-ए-इंशा

दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो

इब्न-ए-इंशा

ढली जो शाम नज़र से उतर गया सूरज

हुसैन ताज रिज़वी

तबीअत इन दिनों औहाम की उन मंज़िलों पर है

हुमैरा रहमान

आँख की क़िस्मत है अब बहता समुंदर देखना

हिमायत अली शाएर

बाहर जो नहीं था तो कोई बात नहीं थी

हिलाल फ़रीद

रुकने के लिए दस्त-ए-सितम-गर भी नहीं था

हिलाल फ़रीद

साक़ी है न मय है न दफ़-ओ-चंग है होली

हातिम अली मेहर

हादिसा इश्क़ में दरपेश हुआ चाहता है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

शहर-ए-ना-पुरसाँ में कुछ अपना पता मिलता नहीं

हसन आबिदी

ख़फ़ा हो मुझ से तो अपने अंदर

हसन अब्बासी

रात-दिन पुर-शोर साहिल जैसा मंज़र मुझ में था

हसन अब्बासी

ख़मोश रह कर पुकारती है

हसन अब्बासी

कल शब क़सम ख़ुदा की बहुत डर लगा हमें

हसन अब्बास रज़ा

हर एक चेहरे पे कंदा हिकायतें देखो

हसन अब्बास रज़ा

आवाज़

हारिस ख़लीक़

ख़ामुशी से सवाल मेरा था

हरबंस तसव्वुर

तमाम आलम से मोड़ कर मुँह मैं अपने अंदर समा गया हूँ

हनीफ़ कैफ़ी

तमाम आलम से मोड़ कर मुँह मैं अपने अंदर समा गया हूँ

हनीफ़ कैफ़ी

सुन क़तार अंदर क़तार अश्जार की सरगोशियाँ

हम्माद नियाज़ी

सब्ज़-खेतों से उमड़ती रौशनी तस्वीर की

हम्माद नियाज़ी

हुज्रा-ए-ख़्वाब से बाहर निकला

हम्माद नियाज़ी

अक्स है बे-ताबियों का दिल की अरमानों में क्यूँ

हामिदुल्लाह अफ़सर

शनासा-ए-हक़ीक़त हो गए हैं

हामिदी काश्मीरी

न जाने कब लिखा जाए

हमीदा शाहीन

ग़म-गुसार

हमीदा शाहीन

अपने हिसार-ए-जिस्म से बाहर भी देखते

हामिद जीलानी

टूट कर बिखरे न सूरज भी है मुझ को डर बहुत

हकीम मंज़ूर

मुंतशिर सायों का है या अक्स-ए-बे-पैकर का है

हकीम मंज़ूर

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