सुन क़तार अंदर क़तार अश्जार की सरगोशियाँ
और कहानी पढ़ ख़िज़ाँ ने रात जो तहरीर की
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बे-सबब हो के बे-क़रार आया
दिखाई देने लगी थी ख़ुशबू
जिस की सौंधी सौंधी ख़ुशबू आँगन आँगन पलती थी
हार दिया है उजलत में
कब मुझे उस ने इख़्तियार दिया
भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए
गली का मंज़र बदल रहा था
सेहन-ए-आइंदा को इम्कान से धोए जाएँ
वो निगह जब मुझे पुकारती थी
बस एक लम्हा तिरे वस्ल का मयस्सर हो
रोज़ मैं उस को जीत जाता था