उम्र की अव्वलीं अज़ानों में
चैन था दिल के कार-ख़ानों में
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कच्ची क़ब्रों पर सजी ख़ुशबू की बिखरी लाश पर
दिल की याद-दहानी से
जिस की सौंधी सौंधी ख़ुशबू आँगन आँगन पलती थी
हमारे बस में क्या है और हमारे बस में क्या नहीं
सब्ज़-खेतों से उमड़ती रौशनी तस्वीर की
सुब्ह सवेरे नंगे पाँव घास पे चलना ऐसा है
दिखाई देने लगी थी ख़ुशबू
सुन क़तार अंदर क़तार अश्जार की सरगोशियाँ
बे-सबब हो के बे-क़रार आया
पेड़ उजड़ते जाते हैं
हम ऐसे लोग जो आइंदा ओ गुज़िश्ता हैं