दिखाई देने लगी थी ख़ुशबू
मैं फूल आँखों पे मल रहा था
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भरवा देना मिरे कासे को
यक़ीन की सल्तनत थी और सुल्तानी हमारी
सुन क़तार अंदर क़तार अश्जार की सरगोशियाँ
कच्ची क़ब्रों पर सजी ख़ुशबू की बिखरी लाश पर
सब्ज़-खेतों से उमड़ती रौशनी तस्वीर की
हुज्रा-ए-ख़्वाब से बाहर निकला
पेड़ उजड़ते जाते हैं
उम्र की अव्वलीं अज़ानों में
दिल के सूने सहन में गूँजी आहट किस के पाँव की
वो निगह जब मुझे पुकारती थी
सेहन-ए-आइंदा को इम्कान से धोए जाएँ
दिल की याद-दहानी से