हार दिया है उजलत में
ख़ुद को किस आसानी से
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सुन क़तार अंदर क़तार अश्जार की सरगोशियाँ
पेड़ उजड़ते जाते हैं
हम इस ख़ातिर तिरी तस्वीर का हिस्सा नहीं थे
भरवा देना मिरे कासे को
उम्र की अव्वलीं अज़ानों में
दिल की याद-दहानी से
गली का मंज़र बदल रहा था
सब्ज़-खेतों से उमड़ती रौशनी तस्वीर की
जब मुंडेरों पे परिंदों की कुमक जारी थी
सेहन-ए-आइंदा को इम्कान से धोए जाएँ
सुब्ह सवेरे नंगे पाँव घास पे चलना ऐसा है