हम इस ख़ातिर तिरी तस्वीर का हिस्सा नहीं थे
तिरे मंज़र में आ जाए न वीरानी हमारी
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आँख बीनाई गँवा बैठी तो
हम ऐसे लोग जो आइंदा ओ गुज़िश्ता हैं
बे-सबब हो के बे-क़रार आया
पेड़ उजड़ते जाते हैं
सब्ज़-खेतों से उमड़ती रौशनी तस्वीर की
दिल की याद-दहानी से
कब मुझे उस ने इख़्तियार दिया
कच्ची क़ब्रों पर सजी ख़ुशबू की बिखरी लाश पर
हार दिया है उजलत में
दिल के सूने सेहन में गूँजी आहट किस के पाँव की
भरवा देना मिरे कासे को