बस एक लम्हा तिरे वस्ल का मयस्सर हो
और उस विसाल के लम्हे को दाइमी किया जाए
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सुब्ह सवेरे नंगे पाँव घास पे चलना ऐसा है
भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए
उम्र की अव्वलीं अज़ानों में
जिस की सौंधी सौंधी ख़ुशबू आँगन आँगन पलती थी
हुज्रा-ए-ख़्वाब से बाहर निकला
दिखाई देने लगी थी ख़ुशबू
दिल के सूने सेहन में गूँजी आहट किस के पाँव की
हम इस ख़ातिर तिरी तस्वीर का हिस्सा नहीं थे
दिल के सूने सहन में गूँजी आहट किस के पाँव की
आँख बीनाई गँवा बैठी तो
सब्ज़-खेतों से उमड़ती रौशनी तस्वीर की