बानकपन Poetry (page 3)

हरम का आईना बरसों से धुँदला भी है हैराँ भी

अज़ीज़ हामिद मदनी

नौ-जवान से

असरार-उल-हक़ मजाज़

सदियों से अजनबी

अासिफ़ शफ़ी

भूल कर तू सारे ग़म अपने चमन में रक़्स कर

अासिफ़ अंजुम

लुत्फ़-ए-बहार मुश्फ़िक़-ए-मन देखते चलो

अरशद अली ख़ान क़लक़

गर दिल में कर के सैर-ए-दिल-ए-दाग़-दार देख

अरशद अली ख़ान क़लक़

मेरे प्यारे वतन

अर्श मलसियानी

न तन्हा नस्तरीन ओ नस्तरन से इश्क़ है मुझ को

अनवर साबरी

ये क़िस्सा-ए-ग़म-ए-दिल है तो बाँकपन से चले

अनवर मोअज़्ज़म

ब-मजबूरी हर इक रंज-ओ-मेहन लिखना पड़ा मुझ को

अमीरुल इस्लाम हाशमी

आशिक़ का बाँकपन न गया बाद-ए-मर्ग भी

अमीर मीनाई

कि जैसे कोई मुसाफ़िर वतन में लौट आए

अमीर इमाम

क़ौमी तराना

अल्ताफ़ मशहदी

मिरे अज़ीज़ो, मिरे रफ़ीक़ो

अली सरदार जाफ़री

उसी के लिए

अली मोहम्मद फ़र्शी

शाम तन्हाई धुआँ उठता बराबर देखते

अख़्तर होशियारपुरी

कभी ज़ख़्म ज़ख़्म निखर के देख कभी दाग़ दाग़ सँवर के देख

अकबर अली खान अर्शी जादह

अदा में बाँकपन अंदाज़ में इक आन पैदा कर

अहसन मारहरवी

अदा में बाँकपन अंदाज़ में इक आन पैदा कर

अहसन मारहरवी

शगुफ़्त-ए-गुल की सदा में रंग-ए-चमन में आओ

अहमद फ़राज़

नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा

आबरू शाह मुबारक

उस की जाम-ए-जम आँखें शीशा-ए-बदन मेरा

अब्दुल्लाह कमाल

बादबाँ खोलेगी और बंद-ए-क़बा ले जाएगी

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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