बानकपन Poetry (page 1)

रहरव-ए-राह-ए-ख़राबात-ए-चमन

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

दूर तक इक सराब देखा है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ख़याल-ओ-ख़्वाब में डूबी दीवार-ओ-दर बनाती हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

नहीं कि इश्क़ नहीं है गुल ओ समन से मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

किस शान किस वक़ार से किस बाँकपन से हम

वाहिद प्रेमी

कभी न हुस्न-ओ-मोहब्बत में बन सकी 'वाहिद'

वाहिद प्रेमी

ये बात दश्त-ए-वफ़ा की नहीं चमन की है

तनवीर अहमद अल्वी

शायरों का जब्र

ताबिश कमाल

इश्क़ में कुछ इस तरह दीवानगी छाई कि बस

सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी

वो बे-रुख़ी कि तग़ाफ़ुल की इंतिहा कहिए

सुरूर बाराबंकवी

आरज़ू जिन की है उन की अंजुमन तक आ गए

सुरूर बाराबंकवी

जो तेरे हुस्न में नर्मी भी बाँकपन भी है

सुलैमान अरीब

वफ़ा का इम्तिहाँ है जान-आे-तन की आज़माइश है

सुलैमान आसिफ़

तुझ तक गुज़र किसी का ऐ गुल-बदन न देखा

शऊर बलगिरामी

दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे

ज़ौक़

वो नियाज़-ओ-नाज़ के मरहले निगह-ओ-सुख़न से चले गए

शाज़ तमकनत

वक़्त आख़िर ले गया वो शोख़ियाँ वो बाँकपन

शायान क़ुरैशी

बात हो दैर-ओ-हरम की या वतन की बात हो

शायान क़ुरैशी

आँखों में हिज्र चेहरे पे ग़म की शिकन तो है

शमीम रविश

ख़मोश किस लिए बैठे हो चश्म-ए-तर क्यूँ हो

शमीम करहानी

सफ़र नसीब अगर हो तो ये बदन क्यूँ है

शमीम हनफ़ी

शहर-ए-जाँ में इज़तिराब-ए-सोज़-ए-फ़न देखेगा कौन

शमीम आज़र

हमारी गुफ़्तुगू सब से जुदा है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

नई बहार का था मुंतज़िर चमन मेरा

शबनम वहीद

आशिक़ की जान जाती है इस बाँकपन को छोड़

शबाब

निगाह-ए-ख़ाक! ज़रा पैराहन बदलना तो

सरवत ज़ेहरा

पाम के पेड़ से गुफ़्तुगू

साक़ी फ़ारुक़ी

रंग-ए-ख़ुलूस गंग-ओ-जमन में नहीं रहा

सलीम सरफ़राज़

वो जो हम-रही का ग़ुरूर था वो सवाद-ए-राह में जल-बुझा

सलीम कौसर

इश्क़ और इतना मोहज़्ज़ब छोड़ कर दीवाना-पन

सलीम अहमद

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