बादल Poetry (page 10)

अब के यारो बरखा-रुत ने मंज़र क्या दिखलाए हैं

हसन रिज़वी

उम्मीद ओ यास ने क्या क्या न गुल खिलाए हैं

हसन नईम

हज़िर-ग़ाएब

हमीदा शाहीन

ख़ाक पर फेंका हवाओं ने उठा ले मुझ को

हामिद जीलानी

दरयूज़ा-गरी

हमीद अलमास

कुछ समझ आया न आया मैं ने सोचा है उसे

हकीम मंज़ूर

ख़ुशबुओं की दश्त से हमसायगी तड़पाएगी

हकीम मंज़ूर

बयाबाँ-ज़ाद कोई क्या कहे ख़ुद बे-मकाँ है

हकीम मंज़ूर

अजब सहरा बदन पर आब का इबहाम रक्खा है

हकीम मंज़ूर

अब ख़ूब हँसेगा दीवाना

हफ़ीज़ जालंधरी

इश्क़ में छेड़ हुई दीदा-ए-तर से पहले

हफ़ीज़ जालंधरी

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना

हबीब जालिब

हम ने सुना था सहन-ए-चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं

हबीब जालिब

जिस को देखो शाम-सवेरे बे-कल है

हबीब कैफ़ी

नज़्म

गुलज़ार

वहम नहीं है

गुलनाज़ कौसर

हयात-ए-रवाँ

गुलनाज़ कौसर

दुआ और बद-दुआ के दरमियाँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

रात का हर इक मंज़र रंजिशों से बोझल था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर वही कहने लगे तू मिरे घर आया था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

लब पे सुर्ख़ी की जगह जो मुस्कुराहट मल रहे हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा

ग़ज़नफ़र

मरहला तय कोई बे-मिन्नत-ए-जादा भी तो हो

गौहर होशियारपुरी

नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे

फ़ुज़ैल जाफ़री

मेरे होंटों पे तेरे नाम की लर्ज़िश तो नहीं

फ़ाज़िल जमीली

कुछ नया करने की ख़्वाहिश में पुराने हो गए

फ़सीह अकमल

तन्हा छोड़ के जाने वाले इक दिन पछताओगे

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

कुछ नहीं गरचे तिरी राहगुज़र से आगे

फ़ारिग़ बुख़ारी

जिस बादल ने सुख बरसाया जिस छाँव में प्रीत मिली

फ़रहत ज़ाहिद

लाख रहे शहरों में फिर भी अंदर से देहाती थे

फ़रहत ज़ाहिद

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