बादल Poetry (page 12)

कोई बादल हो तो थम जाए मगर अश्क मिरे

बशीर बद्र

इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं

बशीर बद्र

पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है

बशीर बद्र

फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे

बशीर बद्र

पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है

बशीर बद्र

पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में

बशीर बद्र

कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी

बशीर बद्र

होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते

बशीर बद्र

अबदियत

बशर नवाज़

जब कभी होंगे तो हम माइल-ए-ग़म ही होंगे

बशर नवाज़

जब छाई घटा लहराई धनक इक हुस्न-ए-मुकम्मल याद आया

बशर नवाज़

छेड़ा ज़रा सबा ने तो गुलनार हो गए

बशर नवाज़

हर तरफ़ बिखर हैं रंगीं साए

बाक़ी सिद्दीक़ी

अपनी धूप में भी कुछ जल

बाक़ी सिद्दीक़ी

मेरी गो आह से जंगल न जले ख़ुश्क तो हो

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

बहुत ज़ी-फ़हम हैं दुनिया को लेकिन कम समझते हैं!

बाक़र मेहदी

अब उजड़ने के हम न बसने के

बकुल देव

आसमाँ पर काले बादल छा गए

बद्र-ए-आलम ख़लिश

कुछ नहीं होता शब भर सोचों का सरमाया होता है

अज़रक़ अदीम

तारीक उजालों में बे-ख़्वाब नहीं रहना

अज़रा वहीद

ख़्वाब-जंगल

अज़रा नक़वी

किसी ख़याल की हिद्दत से जलना चाहती हूँ

अज़रा नक़वी

ब-नाम-ए-इब्न-ए-आदम

अज़ीज़ क़ैसी

सुनो मुसाफ़िर! सराए-जाँ को तुम्हारी यादें जला चुकी हैं

अज़ीज़ नबील

चश्म-ए-साक़ी का तसव्वुर बज़्म में काम आ गया

अज़ीज़ लखनवी

इस बुलंदी पे कहाँ थे पहले

अज़हर इनायती

हमें रोको नहीं हम ने बहुत से काम करने हैं

अज़हर अदीब

महरूमी के दुख और तन्हाई के रंज उठाए

अज़ीम मुर्तज़ा

रूह ज़ख़्मी है जिस्म घायल है

आयुष चराग़

ग़म के बादल दिल-ए-नाशाद पे ऐसे छाए

अतहर राज़

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