बादल Poetry (page 8)

आया उफ़ुक़ की सेज तक आ कर पलट गया

रशीद क़ैसरानी

सहरा-ए-बे-ख़याल में जल-थल कहाँ के हैं

रसा चुग़ताई

रूह में घोर अंधेरे को उतरने न दिया

राम रियाज़

दिल की धड़कन उलझ रही है ये कैसी सौग़ात ग़ज़ल की

रख़शां हाशमी

न मंज़िलें थीं न कुछ दिल में था न सर में था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मैं चुप खड़ा था तअल्लुक़ में इख़्तिसार जो था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

बाहम सुलूक-ए-ख़ास का इक सिलसिला भी है

राज नारायण राज़

ऊपर बादल नीचे पर्बत बीच में ख़्वाब ग़ज़ालाँ का

रईस फ़रोग़

हवा ने बादल से क्या कहा है

रईस फ़रोग़

घर में सहरा है तो सहरा को ख़फ़ा कर देखो

रईस फ़रोग़

गर्म ज़मीं पर आ बैठे हैं ख़ुश्क लब-ए-महरूम लिए

रईस फ़रोग़

फ़ज़ा उदास है सूरज भी कुछ निढाल सा है

रईस फ़रोग़

आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना

रईस फ़रोग़

दिल की खेती सूख रही है कैसी ये बरसात हुई

राही मासूम रज़ा

तश्बीब

राही मासूम रज़ा

तआरुफ़

राही मासूम रज़ा

रंग हवा से छूट रहा है मौसम-ए-कैफ़-ओ-मस्ती है

राही मासूम रज़ा

मैं कि वक़्फ़-ए-ग़म-ए-दौराँ न हुआ था सो हुआ

इक़बाल उमर

छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही

इक़बाल उमर

प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है

इक़बाल अशहर

ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को

इक़बाल अशहर

सिलसिला ख़त्म हुआ जलने जलाने वाला

इक़बाल अशहर

रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया

इक़बाल अशहर

प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था

इक़बाल अशहर

प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है

इक़बाल अशहर

दिल भी पत्थर सीना पत्थर आँख पे पट्टी रक्खी है

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

जाड़े में क्या मज़ा हो वो तो सिमट रहे हों

इंशा अल्लाह ख़ान

दिसम्बर आ गया है

इंजील सहीफ़ा

अन-छूई कथा

इंजील सहीफ़ा

नहीं मालूम ये क्या कर चुके हैं

इनाम नदीम

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