बादल Poetry (page 7)
ड्राइंग-रूम
सलाम मछली शहरी
धुआँ
सलाम मछली शहरी
ज़हर इन के हैं मिरे देखे हुए भाले हुए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
घिरते बादल में तन्हाई कैसी लगती है
सज्जाद बाक़र रिज़वी
बूटा बूटा मुँह खोलेगा पत्ता पत्ता बोलेगा
सैलानी सेवते
वो सुब्ह कभी तो आएगी
साहिर लुधियानवी
उमीद
साहिर लुधियानवी
इंतिज़ार
साहिर लुधियानवी
सावन की रुत आ पहुँची काले बादल छाएँगे
साग़र निज़ामी
रहेगा प्यासों से पानी का फ़ासला कब तक
साग़र ख़य्यामी
नहीं है ये तिरा कूचा नहीं है
सईद राही
चाँद गुम-सुम चमकता हुआ और मैं
सदफ़ जाफ़री
आग थी ऐसी कि अरमाँ जल गए
सदफ़ जाफ़री
दिल के कहने पर चल निकला
सदा अम्बालवी
हो कोई मसअला अपना दुआ पर छोड़ देते हैं
साबिर रज़ा
आँखों में वो आएँ तो हँसाते हैं मुझे ख़्वाब
सबीला इनाम सिद्दीक़ी
उतरी है आसमाँ से जो कल उठा तो ला
रियाज़ ख़ैराबादी
हंगामे से वहशत होती है तन्हाई में जी घबराए है
रिफ़अत सरोश
नींद आँखों में मुसलसल नहीं होने देता
रेहाना रूही
दो बादल आपस में मिले थे फिर ऐसी बरसात हुई
राज़ी अख्तर शौक़
रोज़ इक शख़्स चला जाता है ख़्वाहिश करता
राज़ी अख्तर शौक़
फिर जो देखा दूर तक इक ख़ामुशी पाई गई
राज़ी अख्तर शौक़
दो बादल आपस में मिले थे फिर ऐसी बरसात हुई
राज़ी अख्तर शौक़
हुस्न पाबंद-ए-हिना हो जैसे
रज़ा हमदानी
हर एक घर का दरीचा खुला है मेरे लिए
रज़ा हमदानी
जवाँ रुतों में लगाए हुए शजर अपने
रासिख़ इरफ़ानी
सैराबी
राशिद आज़र
साया था मेरा और मिरे शैदाइयों में था
राशिद आज़र
रुके हुए हैं जो दरिया उन्हें रवानी दे
रशीदुज़्ज़फ़र
सहरा सहरा बात चली है नगरी नगरी चर्चा है
रशीद क़ैसरानी
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