बदन Poetry (page 23)

मिरा ज़ेहन मुझ को रहा करे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बदन-दरीदा रूहों के नाम एक नज़्म

इफ़्तिख़ार आरिफ़

वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कुछ भी नहीं कहीं नहीं ख़्वाब के इख़्तियार में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बला नई कोई पालूँ अगर इजाज़त हो

इफ़्फ़त अब्बास

ये और बात है कि बरहना थी ज़िंदगी

इब्राहीम अश्क

न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा

इब्राहीम अश्क

मोहब्बतों में जो मिट मिट के शाहकार हुआ

इब्राहीम अश्क

मैं कब रहीन-ए-रेग-ए-बयाबान-ए-यास था

इब्राहीम अश्क

दुनिया लुटी तो दूर से तकता ही रह गया

इब्राहीम अश्क

माहौल से जैसे कि घुटन होने लगी है

हुसैन ताज रिज़वी

है मेरे गिर्द यक़ीनन कहीं हिसार सा कुछ

हुसैन ताज रिज़वी

कभी वफ़ूर-ए-तमन्ना कभी मलामत ने

हुसैन आबिद

ये किस की याद की बारिश में भीगता है बदन

हुमैरा राहत

हवा के साथ ये कैसा मोआमला हुआ है

हुमैरा राहत

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

मादर-ए-वतन का नौहा

हिमायत अली शाएर

दूसरा तजरबा

हिमायत अली शाएर

अन-कही

हिमायत अली शाएर

ये बात तो नहीं है कि मैं कम स्वाद था

हिमायत अली शाएर

वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया

हातिम अली मेहर

बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है

हातिम अली मेहर

तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न जो उन के सुख़न में थी

हसरत मोहानी

तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न जो उन के सुख़न में थी

हसरत मोहानी

दिल ने पाया जो मिरे मुज़्दा तिरी पाती का

हसरत अज़ीमाबादी

ज़िंदगी क्या यूँही नाशाद करेगी मुझ को

हाशिम रज़ा जलालपुरी

तमाशा अहल-ए-मोहब्बत ये चार-सू करते

हाशिम रज़ा जलालपुरी

वो एक रात की गर्दिश में इतना हार गया

हसीब सोज़

वो एक रात की गर्दिश में इतना हार गया

हसीब सोज़

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