बिहार Poetry (page 41)

मंज़िल-ए-दिल मिली कहाँ ख़त्म-ए-सफ़र के बाद भी

अली जव्वाद ज़ैदी

फ़रेब-ए-जल्वा कहाँ तक ब-रू-ए-कार रहे

अली अख़्तर अख़्तर

फ़रेब-ए-जल्वा कहाँ तक ब-रू-ए-कार रहे

अली अख़्तर अख़्तर

काटी है ग़म की रात बड़े एहतिराम से

अली अहमद जलीली

जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ

अलीना इतरत

वो अर्ज़-ए-ग़म पे मश्वरा-ए-इख़्तिसार दे

अलीम उस्मानी

उर्दू

आलम मुज़फ्फ़र नगरी

ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए'तिबार फिर

अकरम नक़्क़ाश

कोई हुनर तो मिरी चश्म-ए-अश्क-बार में है

अकरम महमूद

यादें

अख़्तर-उल-ईमान

बाज़-आमद --- एक मुन्ताज

अख़्तर-उल-ईमान

वक़्त की क़द्र

अख़्तर शीरानी

नज़्र-ए-वतन

अख़्तर शीरानी

जहाँ 'रेहाना' रहती थी

अख़्तर शीरानी

दिल-ओ-दिमाग़ को रो लूँगा आह कर लूँगा

अख़्तर शीरानी

दावत

अख़्तर शीरानी

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

अख़्तर शीरानी

ज़मान-ए-हिज्र मिटे दौर-ए-वस्ल-ए-यार आए

अख़्तर शीरानी

यक़ीन-ए-वादा नहीं ताब-ए-इंतिज़ार नहीं

अख़्तर शीरानी

वो कहते हैं रंजिश की बातें भुला दें

अख़्तर शीरानी

उम्र भर की तल्ख़ बेदारी का सामाँ हो गईं

अख़्तर शीरानी

निकहत-ए-ज़ुल्फ़ से नींदों को बसा दे आ कर

अख़्तर शीरानी

न वो ख़िज़ाँ रही बाक़ी न वो बहार रही

अख़्तर शीरानी

मिरी शाम-ए-ग़म को वो बहला रहे हैं

अख़्तर शीरानी

मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू!

अख़्तर शीरानी

हमारे हाथ में कब साग़र-ए-शराब नहीं

अख़्तर शीरानी

दिल में ख़याल-ए-नर्गिस-ए-जानाना आ गया

अख़्तर शीरानी

आश्ना हो कर तग़ाफ़ुल आश्ना क्यूँ हो गए

अख़्तर शीरानी

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या

अख़्तर शीरानी

हाथ जब मौसम के गीले हो गए हैं

अख़तर शाहजहाँपुरी

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