हसन Poetry (page 9)

मिरी मंज़िलें कहीं और हैं मिरा रास्ता कोई और है

ताहिर फ़राज़

क़िस्सा-ए-शब

ताबिश कमाल

'ताबिश' हवस-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार कहाँ तक

ताबिश देहलवी

सब ग़म कहें जिसे कि तमन्ना कहें जिसे

ताबिश देहलवी

मंज़िलों को नज़र में रक्खा है

ताबिश देहलवी

आग़ाज़-ए-गुल है शौक़ मगर तेज़ अभी से है

ताबिश देहलवी

शबाब-ए-हुस्न है बर्क़-ओ-शरर की मंज़िल है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

शबाब-ए-हुस्न है बर्क़-ओ-शरर की मंज़िल है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

सर-ता-ब-क़दम एक हसीं राज़ का आलम

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

क़ुसूर इश्क़ में ज़ाहिर है सब हमारा था

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

हुजूम-ए-दर्द का इतना बढ़े असर गुम हो

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

बहार आई गुल-अफ़्शानियों के दिन आए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

शब को फिरे वो रश्क-ए-माह ख़ाना-ब-ख़ाना कू-ब-कू

ताबाँ अब्दुल हई

नहीं तुम मानते मेरा कहा जी

ताबाँ अब्दुल हई

मैं हो के तिरे ग़म से नाशाद बहुत रोया

ताबाँ अब्दुल हई

शोला-ए-हुस्न से था दूद-ए-दिल अपना अव्वल

तअशशुक़ लखनवी

चला घर से वो बहर-ए-हुस्न अल्लाह रे कशिश दिल की

तअशशुक़ लखनवी

बार-ए-ख़ातिर ही अगर है तो इनायत कीजे

तअशशुक़ लखनवी

याद-ए-अय्याम कि हम-रुतबा-ए-रिज़वाँ हम थे

तअशशुक़ लखनवी

उन्स है ख़ाना-ए-सय्याद से गुलशन कैसा

तअशशुक़ लखनवी

ता-सहर की है फ़ुग़ाँ जान के ग़ाफ़िल मुझ को

तअशशुक़ लखनवी

सू-ए-दयार ख़ंदा-ज़न वो यार-ए-जानी फिर गया

तअशशुक़ लखनवी

जोश पर थीं सिफ़त-ए-अब्र-ए-बहारी आँखें

तअशशुक़ लखनवी

दो दमों से है फ़क़त गोर-ए-ग़रीबाँ आबाद

तअशशुक़ लखनवी

बाग़ में फूलों को रौंद आई सवारी आप की

तअशशुक़ लखनवी

यूँ क़त्ल-ए-आम नौ-ए-बशर कर दिया गया

सय्यद ज़मीर जाफ़री

हम ज़माने से फ़क़त हुस्न-ए-गुमाँ रखते हैं

सय्यद ज़मीर जाफ़री

ले के अपनी ज़ुल्फ़ को वो प्यारे प्यारे हाथ में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

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