बीमार Poetry (page 4)

क्या ग़रज़ लाख ख़ुदाई में हों दौलत वाले

ज़ौक़

कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिज्राँ छोड़ कर

ज़ौक़

हुए क्यूँ उस पे आशिक़ हम अभी से

ज़ौक़

गईं यारों से वो अगली मुलाक़ातों की सब रस्में

ज़ौक़

आँखें मिरी तलवों से वो मिल जाए तो अच्छा

ज़ौक़

आँख उस पुर-जफ़ा से लड़ती है

ज़ौक़

यार को महरूम-ए-तमाशा किया

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

तंग थी जा ख़ातिर-ए-नाशाद में

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

गोर में याद-ए-क़द-ए-यार ने सोने न दिया

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

छटा आदमी

शाज़ तमकनत

देखते हैं जब कभी ईमान में नुक़सान शैख़

शौक़ बहराइची

एक वहशत है रहगुज़ारों में

शौकत परदेसी

दर से मायूस तिरे तालिब-ए-इकराम चले

शातिर हकीमी

तन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगा

शारिक़ कैफ़ी

हाथ आता तो नहीं कुछ प तक़ाज़ा कर आएँ

शारिक़ कैफ़ी

हैं अब इस फ़िक्र में डूबे हुए हम

शारिक़ कैफ़ी

नीले पीले सियाह सुर्ख़ सफ़ेद सब थे शामिल इसी तमाशे में

शमीम हनफ़ी

मिम्बरों पर भी गुनहगार नज़र आते हैं

शकील शम्सी

इक बीमार वसिय्यत करने वाला है

शकील जमाली

इक बीमार वसीयत करने वाला है

शकील जमाली

उल्टे सीधे सपने पाले बैठे हैं

शकील जमाली

कहानी में छोटा सा किरदार है

शकील जमाली

अब बंद जो इस अब्र-ए-गुहर-बार को लग जाए

शकील जमाली

तिरी महफ़िल से उठ कर इश्क़ के मारों पे क्या गुज़री

शकील बदायुनी

अपनी हस्ती को मिटा दूँ तिरे जैसा हो जाऊँ

शकील आज़मी

ये सितारे मुझे दीवार नहीं होने के

शाइस्ता सहर

गुल नहीं ख़ार समझते हैं मुझे

शाइस्ता सहर

कभू बीमार सुन कर वो अयादत को तो आता था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

इतना मैं इंतिज़ार किया उस की राह में

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

एक दिन पूछा न 'हातिम' को कभू उस ने कि दोस्त

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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