चाँद Poetry (page 19)

धुँद

इफ़्तेख़ार जालिब

बनती है सँवरती है बिखर जाती है दुनिया

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

रौशन दिल वालों के नाम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अगर वो चाँद की बस्ती का रहने वाला था

इफ़्फ़त ज़र्रीं

अगर वो मिल के बिछड़ने का हौसला रखता

इफ़्फ़त ज़र्रीं

किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है

इदरीस बाबर

देखा नहीं चाँद ने पलट कर

इदरीस बाबर

अपने एहसानों का नीला साएबाँ रहने दिया

इबरत मछलीशहरी

ख़याल-ए-बद से हमा-वक़्त इज्तिनाब करो

इबरत बहराईची

ज़ेहन से दिल का बार उतरा है

इब्न-ए-सफ़ी

हम से मिलते थे सितारे आप के

इब्न-ए-मुफ़्ती

बर्क़ ने जब भी आँख खोली है

इब्न-ए-मुफ़्ती

वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं

इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

कातिक का चाँद

इब्न-ए-इंशा

दिल-आशोब

इब्न-ए-इंशा

चाँद के तमन्नाई

इब्न-ए-इंशा

राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा

इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

इब्न-ए-इंशा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ

इब्न-ए-इंशा

धूल-भरी आँधी में सब को चेहरा रौशन रखना है

हुसैन माजिद

वो तक़ाज़ा-ए-जुनूँ अब के बहारों में न था

होश तिर्मिज़ी

तज़ाद

हिमायत अली शाएर

बगूला

हिमायत अली शाएर

तुम भी निगाह में हो अदू भी नज़र में है

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

रौशनी तेज़ करो चाँद सितारो अपनी

हीरा लाल फ़लक देहलवी

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