चाँद Poetry (page 17)

फ़ज़ा कि फिर आसमान भर थी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मयस्सर मुफ़्त में थे आसमाँ के चाँद तारे तक

राजेश रेड्डी

इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी

राजेश रेड्डी

क़स्र-ए-वीराँ

राजा मेहदी अली ख़ाँ

जमाल-ज़ादा

राजा मेहदी अली ख़ाँ

शमएँ जुगनू चाँद के हाले जम्अ करो

राज खेती

शमएँ जुगनू चाँद के हाले जम्अ' करो

राज खेती

रातों को दिन के सपने देखूँ दिन को बिताऊँ सोने में

रईस फ़रोग़

फ़ज़ा मलूल थी मैं ने फ़ज़ा से कुछ न कहा

रईस फ़रोग़

सुब्ह-ए-नौ हम तो तिरे साथ नुमायाँ होंगे

रईस अमरोहवी

बता क्या क्या तुझे ऐ शौक-ए-हैराँ याद आता है

रईस अमरोहवी

ईद का चाँद जो देखा तो तमन्ना लिपटी

रहमत क़रनी

निकलो हिसार-ए-ज़ात से तो कुछ सुझाई दे

रहमत क़रनी

ख़ूब नासेह की नसीहत का नतीजा निकला

रहमत क़रनी

अश्क आँखों में और दिल में आहों के शरर देखे

राही शहाबी

तश्बीब

राही मासूम रज़ा

तआरुफ़

राही मासूम रज़ा

एक नज़्म सुब्ह के इंतिज़ार में

राही मासूम रज़ा

दर्द तन्हाई का

राही मासूम रज़ा

चाँद और चकोर

राही मासूम रज़ा

हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद

राही मासूम रज़ा

साक़ी भले फटकने न दे पास जाम के

राहील फ़ारूक़

नक़ाब चेहरे से उस के कभी सरकता था

इरफ़ान अहमद

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

इक़बाल साजिद

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

इक़बाल साजिद

रुख़-ए-रौशन का रौशन एक पहलू भी नहीं निकला

इक़बाल साजिद

प्यासे के पास रात समुंदर पड़ा हुआ

इक़बाल साजिद

मुझे नहीं है कोई वहम अपने बारे में

इक़बाल साजिद

इक रिदा-ए-सब्ज़ की ख़्वाहिश बहुत महँगी पड़ी

इक़बाल साजिद

बख़्शे न गए एक को बख़्शा न कभी

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

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