चाँद Poetry (page 16)

ये मिरी रूह सियह रात में निकली है कहाँ

रउफ़ रज़ा

बहुत ख़ूबियाँ हैं हवस-कार दिल में

रउफ़ रज़ा

ज़बाँ पे हर्फ़ तो इंकार में नहीं आता

रऊफ़ ख़ैर

इस ए'तिबार से वो ज़ूद-रंज अच्छा है

राशिद मुराद

ग़ौर करो तो चेहरा चेहरा ओढ़े गहरे गहरे रंग

राशिद मतीन

अजीब ख़्वाहिश

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

भले दिन आएँ तो आने वाले बुरे दिनों का ख़याल रखना

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

बस एक बार तिरा अक्स झिलमिलाया था

राशिद अनवर राशिद

ये ज़ाविया सूरज का बदल जाएगा साईं

रशीद क़ैसरानी

उठ गई आज चाँद की डोली

रशीद क़ैसरानी

तन्हाइयों का हब्स मुझे काटता रहा

रशीद क़ैसरानी

तन्हाइयों का हब्स मुझे काटता रहा

रशीद क़ैसरानी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

जब रात के सीने में उतरना है तो यारो

रशीद क़ैसरानी

गाता रहा है दूर कोई हीर रात भर

रशीद क़ैसरानी

दीप से दीप जलाओ तो कोई बात बने

रशीद क़ैसरानी

आया उफ़ुक़ की सेज तक आ कर पलट गया

रशीद क़ैसरानी

हुस्न क्या जिस को किसी हुस्न से ख़तरा न हुआ

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

निकल कर साया-ए-अब्र-ए-रवाँ से

रसा चुग़ताई

मैं ने सोचा था इस अजनबी शहर में ज़िंदगी चलते-फिरते गुज़र जाएगी

रसा चुग़ताई

जब भी तेरी यादों का सिलसिला सा चलता है

रसा चुग़ताई

इस से पहले नज़र नहीं आया

रसा चुग़ताई

भला कह दिया या बुरा कह दिया

राणा गन्नौरी

कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ

रम्ज़ी असीम

इस सदी का जब कभी ख़त्म-ए-सफ़र देखेंगे लोग

रम्ज़ अज़ीमाबादी

ज़िंदगी इन दिनों उदास कहाँ

रमेश कँवल

सरमा था मगर फिर भी वो दिन कितने बड़े थे

राम रियाज़

मुझे कैफ़-ए-हिज्र अज़ीज़ है तू ज़र-ए-विसाल समेट ले

राम रियाज़

आँखों में तेज़ धूप के नेज़े गड़े रहे

राम रियाज़

'नून-मीम-राशिद' के इंतिक़ाल पर

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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