चाँद Poetry (page 20)

पहुँचो गर इक चाँद पर सौ और आते हैं नज़र

हीरा लाल फ़लक देहलवी

रंग-आमेज़ी से पैदा कुछ असर ऐसा हुआ

हीरा लाल फ़लक देहलवी

किधर का चाँद हुआ 'मेहर' के जो घर आए

हातिम अली मेहर

पूछेगा जो वो रश्क-ए-क़मर हाल हमारा

हातिम अली मेहर

ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं

हातिम अली मेहर

तमाम तारों को जैसे क़मर से जोड़ा है

हस्सान अहमद आवान

ज़मीनों में सितारे बो रहा हूँ

हाशिम रज़ा जलालपुरी

विसाल-ओ-हिज्र के जंजाल में पड़ा हुआ हूँ

हाशिम रज़ा जलालपुरी

तमाशा अहल-ए-मोहब्बत ये चार-सू करते

हाशिम रज़ा जलालपुरी

निगाहें झुक गईं आया शबाब आहिस्ता आहिस्ता

हाशिम अली ख़ाँ दिलाज़ाक

ज़रा सी चोट लगी थी कि चलना भूल गए

हसीब सोज़

मैं ने उस को बर्फ़ दिनों में देखा था

हसन रिज़वी

कभी किताबों में फूल रखना कभी दरख़्तों पे नाम लिखना

हसन रिज़वी

वो जो दर्द था तिरे इश्क़ का वही हर्फ़ हर्फ़-ए-सुख़न में है

हसन नईम

रश्क अपनों को यही है हम ने जो चाहा मिला

हसन नईम

कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे

हसन नईम

वो चाँद जो उतरा है किसी और के घर में

हसन नासिर

मंज़र में अगर कुछ भी दिखाई नहीं देगा

हसन नासिर

हो तेरी याद का दिल में गुज़र आहिस्ता आहिस्ता

हसन अकबर कमाल

हसीन यादों के चाँद को अलविदा'अ कह कर

हसन अब्बासी

उदास शामों बुझे दरीचों में लौट आया

हसन अब्बासी

न आरज़ुओं का चाँद चमका न क़ुर्बतों के गुलाब महके

हसन अब्बास रज़ा

मैं तलाश में किसी और की मुझे ढूँढता कोई और है

हसन अब्बास रज़ा

मंज़र दे बीनाई दे

हरबंस तसव्वुर

सुलगती याद से ख़ूँ अट न जाए

हनीफ़ तरीन

सिमटती शाम अगर दर्द को जगाएगी

हनीफ़ तरीन

ये चलती-फिरती सी लाशें शुमार करने को

हामिदी काश्मीरी

न जाने कब लिखा जाए

हमीदा शाहीन

घूम रहे हैं आँगन आँगन चाँद हवा और मैं

हामिद यज़दानी

शहर-ए-तरब में आज अजब हादिसा हुआ

हामिद सरोश

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