वो चाँद जो उतरा है किसी और के घर में
मुझ को तो अँधेरों से रिहाई नहीं देगा
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क्या ख़बर कब लौट आएँ अजनबी देसों से वो
खुले दिलों से मिले फ़ासला भी रखते रहे
डाइरी में लिख के मेरे तज़्किरे रख छोड़ना
उलझी हुई सोचों की गिर्हें खोलते रहना
मंज़र में अगर कुछ भी दिखाई नहीं देगा
अब आइना भी मिज़ाजों की बात करता है
दरख़्त कट गया लेकिन वो राब्ते 'नासिर'