अब आइना भी मिज़ाजों की बात करता है
बिखर गए हैं वो चेहरे जो अक्स बनते रहे
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वो चाँद जो उतरा है किसी और के घर में
उलझी हुई सोचों की गिर्हें खोलते रहना
खुले दिलों से मिले फ़ासला भी रखते रहे
क्या ख़बर कब लौट आएँ अजनबी देसों से वो
डाइरी में लिख के मेरे तज़्किरे रख छोड़ना
दरख़्त कट गया लेकिन वो राब्ते 'नासिर'
मंज़र में अगर कुछ भी दिखाई नहीं देगा