भागो Poetry (page 18)

नज़र की फ़त्ह कभी क़ल्ब की शिकस्त लगे

बेकल उत्साही

बहुत ज़ोरों पे वी-सी-आर था कल शब जहाँ मैं था

बेदिल जौनपूरी

मिरी दास्तान-ए-अलम तो सुन कोई ज़लज़ला नहीं आएगा

बेदिल हैदरी

गुल का किया जो चाक गरेबाँ बहार ने

बेदम शाह वारसी

शैख़ के माथे पे मिट्टी बरहमन के बर में बुत

बयान मेरठी

कोई समझाईयो यारो मिरा महबूब जाता है

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

मुझे लगता है दिल खिंच कर चला आता है हाथों पर

बशीर बद्र

जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है

बशीर बद्र

बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाम

बशीर बद्र

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

बशीर बद्र

वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो

बशीर बद्र

पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में

बशीर बद्र

मिरी ग़ज़ल की तरह उस की भी हुकूमत है

बशीर बद्र

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

बशीर बद्र

हुई मुद्दतें ऐ दिल-ए-हज़ीं न पयाम है न सलाम है

बशीरुद्दीन राज़

या मह-ओ-साल की दीवार गिरा दी जाए

बशीर अहमद बशीर

असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं

बाक़ी सिद्दीक़ी

ये रात

बाक़र मेहदी

मैं भाग के जाऊँगा कहाँ अपने वतन से

बाक़र मेहदी

हादसा होता रहा है मुझ में

बलवान सिंह आज़र

दो क़दम साथ क्या चला रस्ता

बलवान सिंह आज़र

खोया खोया उदास सा होगा

बलराज कोमल

हुए हम बे-सर-ओ-सामान लेकिन

बकुल देव

क़ारूँ उठा के सर पे सुना गंज ले चला

ज़फ़र

नवेद-ए-सफ़र

बद्र वास्ती

खड़ा था कौन कहाँ कुछ पता चला ही नहीं

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

हिज्र में जो अश्क-ए-चश्म-ए-तर गिरा

बदर जमाली

चाँद सा चेहरा कुछ इतना बेबाक हुआ

अज़्म शाकरी

कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है

अज़लान शाह

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