छोड़ दो Poetry (page 1)

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दस्तूर साज़ी की कोशिश

रज़ा नक़वी वाही

तुझ को अपना के भी अपना नहीं होने देना

आमिर अमीर

मुसलमान और हिन्दोस्तान

हिन्दी गोरखपुरी

शहर की गलियाँ चराग़ों से भर गईं

जवाज़ जाफ़री

मोहब्बत हादसा है

फ़ाख़िरा बतूल

14-अगस्त

हबीब जालिब

हिजरत

ग़ज़नफ़र

मुँह अंधेरे जगा के छोड़ गई

अहमद मुश्ताक़

कोई रुत्बा तो कोई नाम-नसब पूछता है

नद्दी ये जैसे मौज में दरिया से जा मिले

जानाँ मलिक

रोने वालों ने तिरे ग़म को सराहा ही नहीं

बिमल कृष्ण अश्क

आख़िर हम ने तौर पुराना छोड़ दिया

अर्श सिद्दीक़ी

ज़ाबता

हबीब जालिब

मोहब्बत ख़्वाब जैसी है

फ़ाख़िरा बतूल

तेरी नज़रों से यार उतर जाऊँ

कभी ख़ुशबू कभी आवाज़ बन जाना पड़ेगा

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

पास हमारे आकर तुम बेगाना से क्यूँ हो

ज़ुहूर नज़र

दीपक-राग है चाहत अपनी काहे सुनाएँ तुम्हें

ज़ुहूर नज़र

तुम जहाँ अपनी मसाफ़त के निशाँ छोड़ गए

ज़ुबैर रिज़वी

जाते मौसम ने जिन्हें छोड़ दिया है तन्हा

ज़ुबैर रिज़वी

अंजाम क़िस्सा-गो का

ज़ुबैर रिज़वी

था हर्फ़-ए-शौक़ सैद हुआ कौन ले गया

ज़ुबैर रिज़वी

तमाम रास्ता फूलों भरा तुम्हारा था

ज़ुबैर रिज़वी

पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है

ज़ुबैर रिज़वी

कई कोठे चढ़ेगा वो कई ज़ीनों से उतरेगा

ज़ुबैर रिज़वी

दोनों हम-पेशा थे दोनों ही में याराना था

ज़ुबैर रिज़वी

भूली-बिसरी हुई यादों में कसक है कितनी

ज़ुबैर रिज़वी

वो जिस ने आँख अता की है देखने के लिए

ज़ुबैर अली ताबिश

इसी नदामत से उस के कंधे झुके हुए हैं

ज़िया मज़कूर

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