छोड़ दो Poetry (page 14)

अजाइब-ख़ाना

सरवत ज़ेहरा

बातों से सितमगर मुझे बहलाता रहा वो

सरवर मजाज़

''एक नज़्म कहीं से भी शुरूअ हो सकती है''

सरवत हुसैन

कभी तेग़-ए-तेज़ सुपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया

सरवत हुसैन

गदा-ए-शहर-ए-आइंदा तही-कासा मिलेगा

सरवत हुसैन

रौशनी रंगों में सिमटा हुआ धोका ही न हो

सरमद सहबाई

ग़फ़लतों का समर उठाता हूँ

सरफ़राज़ ज़ाहिद

दो आँखों से कम से कम इक मंज़र में

सरफ़राज़ ज़ाहिद

अफ़्सोस क्या जो हम भी तुम्हारे नहीं रहे

सरदार सोज़

नाला शब-ए-फ़िराक़ जो कोई निकल गया

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है

सरदार अंजुम

एक नाज़ुक दिल के अंदर हश्र बरपा कर दिया

सरस्वती सरन कैफ़

चराग़ जब मेरा कमरा नापता है

सारा शगुफ़्ता

चाँद का क़र्ज़

सारा शगुफ़्ता

बदन से पूरी आँख है मेरी

सारा शगुफ़्ता

आधा कमरा

सारा शगुफ़्ता

मुर्दा-ख़ाना

साक़ी फ़ारुक़ी

ख़रगोश की सरगुज़िश्त

साक़ी फ़ारुक़ी

अलकुबड़े

साक़ी फ़ारुक़ी

वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे

साक़ी फ़ारुक़ी

मौत ने पर्दा करते करते पर्दा छोड़ दिया

साक़ी फ़ारुक़ी

ख़ामुशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना

साक़ी फ़ारुक़ी

हैं सेहर-ए-मुसव्विर में क़यामत नहीं करते

साक़ी फ़ारुक़ी

करनी नहीं है दुनिया में इक दुश्मनी मुझे

संजीव आर्या

वो आरज़ू कि दिलों को उदास छोड़ गई

समद अंसारी

चश्म-ए-हैराँ को यूँ ही महव-ए-नज़र छोड़ गए

समद अंसारी

मय-कशी छोड़ दी तौहीन-ए-हुनर कर आया

सलमान अंसारी

दोस्ती कुछ नहीं उल्फ़त का सिला कुछ भी नहीं

सलमान अख़्तर

अब ख़यालों का जहाँ और न आबाद करें

सलमा शाहीन

नए जहानों का इक इस्तिआरा कर के लाओ

सालिम सलीम

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