छोड़ दो Poetry (page 13)

रहा शामिल जो मेरे रतजगों में कौन था वो

शफ़ीक़ सलीमी

जान जोखिम से किए सर जो मराहिल तू ने

शादाब उल्फ़त

ख़्वाह मुफ़्लिसी से निकल गया या तवंगरी से निकल गया

शाद बिलगवी

अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया

शाद अज़ीमाबादी

अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया

शाद अज़ीमाबादी

वो तो आईना-नुमा था मुझ को

शबनम शकील

तन्हा खड़े हैं हम सर-ए-बाज़ार क्या करें

शबनम शकील

मिरा जीना गवाही दे रहा है

शबनम शकील

लम्हों का पथराव है मुझ पर सदियों की यलग़ार

शबनम रूमानी

नज़्म

शबनम अशाई

ले के बे-शक हाथ में ख़ंजर चलो

शबाब ललित

हुई मुद्दत कि मैं ने बुत-परस्ती छोड़ दी ज़ाहिद

शबाब

आशिक़ की जान जाती है इस बाँकपन को छोड़

शबाब

इंतिज़ार था हम को ख़ुशनुमा बहारों का

शाद आरफ़ी

वो दर्द है कि दर्द सरापा बना दिया

सेहर इश्क़ाबादी

तकमील-ए-इश्क़ जब हो कि सहरा भी छोड़ दे

सेहर इश्क़ाबादी

तकमील-ए-इश्क़ जब हो कि सहरा भी छोड़ दे

सेहर इश्क़ाबादी

अजीब शाम थी जब लौट कर मैं घर आया

सीमान नवेद

माज़ी-ए-मरहूम की नाकामियों का ज़िक्र छोड़

सीमाब अकबराबादी

है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू

सीमाब अकबराबादी

वुसअतें महदूद हैं इदराक-ए-इंसाँ के लिए

सीमाब अकबराबादी

ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे

सीमाब अकबराबादी

एक मंज़र में कई बार उसे देख के देख

सीमा नक़वी

चूर अना कर दी पत्थर-पन तोड़ दिया

सौरभ शेखर

कहियो सबा सलाम हमारा बहार से

मोहम्मद रफ़ी सौदा

वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं

मोहम्मद रफ़ी सौदा

हिन्दू हैं बुत-परस्त मुसलमाँ ख़ुदा-परस्त

मोहम्मद रफ़ी सौदा

तुझ को मेरे क़ुर्ब में पा कर जलते हैं दीवाने लोग

सत्यपाल जाँबाज़

आधा-अधूरा शख़्स

सत्यपाल आनंद

कहाँ कहाँ से निगह उस को ढूँड लाए है

सत्य नन्द जावा

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