अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
ज़िंदगी छोड़ दे पीछा मिरा मैं बाज़ आया
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साक़ी के करम से फ़ैज़ ये जारी है
अगर मरते हुए लब पर न तेरा नाम आएगा
किस पे क़ाबू जो तुझी पे नहीं क़ाबू अपना
तेरी ज़ुल्फ़ें ग़ैर अगर सुलझाएगा
सौ तरह का मेरे लिए सामान क्या
ता-उम्र आश्ना न हुआ दिल गुनाह का
लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपाए
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे
हरगिज़ कभी किसी से न रखना दिला ग़रज़
दिल मोरिद-ए-ईज़ा-ओ-बला होता है
लुत्फ़ क्या है बे-ख़ुदी का जब मज़ा जाता रहा
काबा ओ दैर में जल्वा नहीं यकसाँ उन का