दिल मोरिद-ए-ईज़ा-ओ-बला होता है
पादाश-ए-अमल में सब बजा होता है
जो क़र्ज़ कि ख़ुश हो के लिया था मैं ने
वो सूद समेत अब अदा होता है
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जब किसी ने हाल पूछा रो दिया
कुछ कहे जाता था ग़र्क़ अपने ही अफ़्साने में था
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
लुत्फ़ क्या है बे-ख़ुदी का जब मज़ा जाता रहा
तारीफ़ बताऊँ शेर की क्या क्या है
जिस दिल में ग़ुबार हो वो दिल साफ़ कहाँ
अख़्लाक़ से जहल इल्म-ओ-फ़न से ग़ाफ़िल
क्या मुफ़्त ज़ाहिदों ने इल्ज़ाम लिया
ये रात भयानक हिज्र की है काटेंगे बड़े आलाम से हम
हादी हूँ मैं काम है हिदायत मेरा
अर्बाब-ए-क़ुयूद तुझ को क्या देखेंगे
जैसे मिरी निगाह ने देखा न हो कभी