क्या मुफ़्त ज़ाहिदों ने इल्ज़ाम लिया
तस्बीह के दानों से अबस काम लिया
ये नाम वो था जिस को बे-गिनती लेते
क्या लुत्फ़ जो गिन गिन के तिरा नाम लिया
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
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Rahat Indori
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Faiz Ahmad Faiz
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Jaun Eliya
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जिस वक़्त का डर था वो शबाब आ पहुँचा
क्यूँ बात छुपाऊँ रिंद-ए-मय-नोश हूँ मैं
मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
जिए जाएँगे हम भी लब पे दम जब तक नहीं आता
ता-उम्र आश्ना न हुआ दिल गुनाह का
परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका
था अजल का मैं अजल का हो गया
दिल-ए-मुज़्तर से पूछ ऐ रौनक़-ए-बज़्म
मिलेगा ग़ैर भी उन के गले ब-शौक़ ऐ दिल
ये रात भयानक हिज्र की है काटेंगे बड़े आलाम से हम
जिस दिल में ग़ुबार हो वो दिल साफ़ कहाँ