तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
खिलौने दे के बहलाया गया हूँ
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अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
कहाँ से लाऊँ सब्र-ए-हज़रत-ए-अय्यूब ऐ साक़ी
जिसे पाला था इक मुद्दत तक आग़ोश-ए-तमन्ना में
तमाम उम्र नमक-ख़्वार थे ज़मीं के हम
मिलेगा ग़ैर भी उन के गले ब-शौक़ ऐ दिल
जिए जाएँगे हम भी लब पे दम जब तक नहीं आता
काबा ओ दैर में जल्वा नहीं यकसाँ उन का
हज़ार हैफ़ छुटा साथ हम-नशीनों का
लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपाए
कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई
अब इंतिहा का तिरे ज़िक्र में असर आया
दिल मोरिद-ए-ईज़ा-ओ-बला होता है