तिरा आस्ताँ जो न मिल सका तिरी रहगुज़र की ज़मीं सही
हमें सज्दा करने से काम है जो वहाँ नहीं तो कहीं सही
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2316) Peoples Rate This
लुत्फ़ क्या है बे-ख़ुदी का जब मज़ा जाता रहा
हर तरह की दिल में चाह कर के छोड़े
हर हाल में आबरू-ए-फ़न लाज़िम है
अर्बाब-ए-क़ुयूद तुझ को क्या देखेंगे
तेरी ज़ुल्फ़ें ग़ैर अगर सुलझाएगा
हरगिज़ कभी किसी से न रखना दिला ग़रज़
कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई
न जाँ-बाज़ों का मजमा था न मुश्ताक़ों का मेला था
काबा ओ दैर में जल्वा नहीं यकसाँ उन का
अख़्लाक़ से जहल इल्म-ओ-फ़न से ग़ाफ़िल
ये बज़्म-ए-मय है याँ कोताह-दोस्ती में है महरूमी