हर तरह की दिल में चाह कर के छोड़े
मशग़ूल-ए-फ़ुग़ाँ-ओ-आह कर के छोड़े
या-रब कभी उस का घर न करना आबाद
जो ग़ैर का घर तबाह कर के छोड़े
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Gulzar
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कुछ ऐसा कर कि ख़ुल्द आबाद तक ऐ 'शाद' जा पहुँचें
परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका
अख़्लाक़ से जहल इल्म-ओ-फ़न से ग़ाफ़िल
क्या फ़क़त तालिब-ए-दीदार था मूसा तेरा
कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई
ये रात भयानक हिज्र की है काटेंगे बड़े आलाम से हम
ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम
तारीफ़ बताऊँ शेर की क्या क्या है
सौ तरह का मेरे लिए सामान क्या
था अजल का मैं अजल का हो गया
इस सिलसिला-ए-शुहूद को तोड़ दिया
इज़हार-ए-मुद्दआ का इरादा था आज कुछ