इस सिलसिला-ए-शुहूद को तोड़ दिया
घबरा के अदम की सम्त मुँह मोड़ दिया
कब तक इन सख़्तियों को झेला करती
उकता के मिरी रूह ने जी छोड़ दिया
Gulzar
Anwar Masood
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Jaun Eliya
Parveen Shakir
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कहाँ से लाऊँ सब्र-ए-हज़रत-ए-अय्यूब ऐ साक़ी
तमाम उम्र नमक-ख़्वार थे ज़मीं के हम
ऐ शौक़ पता कुछ तू ही बता अब तक ये करिश्मा कुछ न खुला
बाज़ अहल-ए-वतन से अब भी दुख पाता हूँ
जिस वक़्त का डर था वो शबाब आ पहुँचा
काबा ओ दैर में जल्वा नहीं यकसाँ उन का
सुनी हिकायत-ए-हस्ती तो दरमियाँ से सुनी
कुछ कहे जाता था ग़र्क़ अपने ही अफ़्साने में था
फ़क़त शोर-ए-दिल-ए-पुर-आरज़ू था
ता-उम्र आश्ना न हुआ दिल गुनाह का
जीते जी हम तो ग़म-ए-फ़र्दा की धुन में मर गए
ख़मोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है